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चीरहरण

दुःशासन आज भी मिलता है हर शहरों में, गाँव में है लुटती द्रौपदी अब भी मगर अब  तुम नही आते थी पांचाली भरे दरबार में निर्वस्त्र होने को था सूरज सभ्यता का अंततः जब अस्त होने को तभी एक चीख निकली थी सुना था तुमने ही जिसको अभी भी चीखते हैं हम, मगर अब  तुम नही आते है लुटती द्रौपदी  .............................................. अभी भी याद है कैसे मुझे तोड़ा-मरोड़ा था डुबाकर दर्द के सागर में उसने मुझको छोड़ा था दरिंदा था वो उसको दर्द का एहसास क्या होता तुझे तो सब पता होगा, मगर अब  तुम नही आते है लुटती द्रौपदी ........................................... हमें तो लोग पीड़ा के भंवर में छोड़ देते हैं न हो जीने के लायक भी ये कह मुँह मोड़ लेते हैं मैं फितरत आदमी की जानती हूँ यही होती है तुझे भी तो पुकारा था मगर अब तुम नही आते है लुटती द्रौपदी ............................................ ये कैसा दाग है, लगता नहीं पापी के दामन पर है लगता क्यूँ ग्रहण उस पर नहीं,मेरे ही जीवन पर तेरी लीला भी तो कुछ कम नहीं, उलझी हुई सी है दुःशासन भेज देते हो मगर अब तुम नही आते है लुटत...

कविता क्या है

क्या हो कविता का मूलभाव और क्या इसकी परिभाषा हो मन के अन्दर जो हिलकोरें हैं ,   कैसी उसकी भाषा हो  छंदबद्ध या छंदमुक्त, क्या हो कविता का असल रूप  कैसा लिबास इसके तन पर हो कैसा इसका रंग रूप दोनों ही है कविता लेकिन दोनों का है अपना विधान संगीत छंद का पूरक है तो शब्द दूसरे में प्रधान कविता के लिए ज़रूरी है कवि के मन में जिज्ञासा हो मन के अन्दर जो हिलकोरें हैं..... भाषा,यति,लय सब दोयम है, अव्वल वो मन से बंध जाए  यह ध्यान रहे पर , रूप बदल कविता न कहानी बन जाए  शब्दों का भीड़ न रहे मात्र, उसमे कुछ तथ्य विचार रहे  यूँ रहे विचार अनन्त भले, शब्दों का पारावार रहे और मन के एक कोने में कवि के थोड़ी काव्य पिपासा हो मन के अन्दर जो हिलकोरें हैं..............